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श्री गणपति महोत्सव का शुभारंभ – महाराष्ट्र मित्र मंडल द्वारा भव्य शोभायात्रा के साथ उत्सव की शुरुआत
श्री गणपति महोत्सव आज से शुरू, महाराष्ट्र मित्र मंडल द्वारा ढोल नगाड़ो संग निकली गई शोभा यात्रा
- मंडल द्वारा 31 अगस्त तक विभिन्न तरह के कार्यक्रम का आयोजन भी किया जाएगा
महाराष्ट्र मित्र मंडल द्वारा 26 अगस्त को गणेश प्रतिमा की भव्य शोभायात्रा 5बी- 81 से उत्सव स्थल गांधी कॉलोनी तक निकाली गई। शोभायात्रा की शुरुआत "गणपति बप्पा मोरया, मंगल मूर्ति मोरया" के गगनभेदी नारों से हुई, जिसने पूरे वातावरण को भक्तिमय बना दिया।
इस वर्ष मंडल ने "ऑपरेशन सिन्दूर" थीम के तहत पंडाल की आकर्षक साज-सज्जा की है, जिसमें पारंपरिक मराठी संस्कृति की झलक के साथ आधुनिकता का समावेश किया गया है। पंडाल में विशेष रूप से पर्यावरण-संवेदनशील सजावट का ध्यान रखा गया है, जिसमें पुनः उपयोग योग्य सामग्री का प्रयोग किया गया है।
यात्रा में सभी वर्ग के व्यक्ति, महिलाएं एवं बच्चे शामिल थे, सभी ने खूब नाचा गाया. रास्ते में जहा जहा गणेश प्रतिमा की यात्रा रुकी वहा वहा लोग बाप्पा का आशीर्वाद लेने से खुद को रोक न पाए . मंडल के संरक्षक यशवंत पांचाल जी ने बताया की गणेश उत्सव का आयोजन बाल गंगाधर तिलक जी ने सभी जाती के धर्म लोगो को इक्कट्ठा करने के लिए सार्वजनिक गणेश उत्सव का आयोजन किया. मंडल द्वारा गत वर्ष की भाँति इस वर्ष भी ढोल एवं डीजे की धुन पर यात्रा शुरू एवं उत्सव स्थल तक पहुँची।
शोभायात्रा में मंडल के राजेन्द्र पांचाल, चिंतामणि, विनय, यशवंत पांचाल, लक्ष्मण पांचाल, रविन्द्र, प्रवीन राठोड, तेजस, कर्ण शर्मा, हरेन्द्र, सचिन पांचाल, शेखर, उत्तम कुमार, रोहित, अक्षय, विनय रोहिल्ला, मीनाक्षी पांचाल, भारती पांचाल, किरण पांचाल, निशा, पौर्णिमा, भावना पांचाल, गायत्री पांचाल एवं मंडल के सभी कार्यकर्ता उपस्थित रहे।
मंडल द्वारा 27 अगस्त को श्री गणेश प्रतिमा की पूर्ण वैदिक विधि विधान एवं मंत्रोच्चार के साथ स्थापना की जाएगी।
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मानव रचना ने ब्लू फूड टेक्नोलॉजी में बड़ा नवाचार किया, वैश्विक पोषण और स्थिरता को बढ़ावा देने की दिशा में अहम कदम
• प्रोटीन से भरपूर आहार की बढ़ती मांग को देखते हुए ब्लू फूड प्रोसेसिंग में नवाचार किए जा रहे हैं, ताकि पोषण, स्थिरता और उत्पादन क्षमता बेहतर की जा सके।
• हाई-प्रेशर प्रोसेसिंग और रीसर्क्युलेटिंग एक्वाकल्चर सिस्टम (RAS) जैसी तकनीकें पर्यावरण पर असर घटाते हुए उत्पादन बढ़ाने में मदद कर रही हैं।
• माइक्रोएल्गी के जेनेटिक मॉडिफिकेशन और नैनोइमल्शन जैसी तकनीकें ब्लू फूड्स की पौष्टिकता और शेल्फ लाइफ बढ़ाकर पोषण की वैश्विक कमी को दूर करने में सहायक हैं।
*फरीदाबाद, 14 जून 2025: मानव रचना इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ रिसर्च एंड स्टडीज़ (MRIIRS) के बायोटेक्नोलॉजी विभाग की रिसर्च एंड डेवलपमेंट सेल ने वैश्विक खाद्य सुरक्षा और स्थिरता पर केंद्रित एक महत्वपूर्ण शोध प्रस्तुत किया है। “ब्लू फूड प्रोसेसिंग टेक्नोलॉजीज और सतत विकास में उनका महत्व” विषय पर प्रकाशित शोध पत्र में डॉ. विनय कुमार पांडे ने इस क्षेत्र में हो रहे अहम बदलावों और तकनीकों की विस्तार से जानकारी दी है।
ब्लू फूड प्रोसेसिंग का मतलब है मछली, शैवाल और अन्य जलीय जीवों का उत्पादन और प्रसंस्करण, जो इंसानी आहार के लिए उपयोग किए जाते हैं। बढ़ती जनसंख्या की पोषण संबंधी ज़रूरतों को पूरा करने में ये स्रोत अहम होते जा रहे हैं। लेकिन पारंपरिक तरीके जैसे कि सामान्य मत्स्य पालन और एक्वाकल्चर अब न तो पर्यावरण के लिहाज़ से टिकाऊ हैं और न ही ज़रूरतों के हिसाब से पर्याप्त। शोध में ऐसी तकनीकों पर ज़ोर दिया गया है जो खाद्य सुरक्षा के साथ-साथ पारिस्थितिक संतुलन भी बनाए रख सकें।
जैसे-जैसे दुनिया भर में प्रोटीन युक्त खाने की मांग बढ़ रही है, ब्लू फूड्स को इस तरह प्रोसेस करने की जरूरत महसूस की जा रही है, जिससे उनकी पौष्टिकता, टिकाऊपन और उत्पादन की क्षमता तो बढ़े ही, साथ ही पर्यावरण पर असर भी कम हो।
शोध में कई उभरती तकनीकों का ज़िक्र किया गया है, जो इस क्षेत्र में बदलाव ला रही हैं। इनमें हाई-प्रेशर प्रोसेसिंग (HPP), फ्रीज़-ड्राइंग, अल्ट्रासाउंड असिस्टेड एक्सट्रैक्शन, पल्स्ड इलेक्ट्रिक फील्ड्स (PEF), प्लाज़्मा टेक्नोलॉजी और माइक्रोवेव इंडक्शन हीटिंग शामिल हैं। ये तकनीकें खाद्य सुरक्षा बनाए रखने, पोषक तत्वों को संरक्षित रखने, उत्पादन प्रक्रिया तेज करने और उत्पाद की शेल्फ लाइफ बढ़ाने में मदद करती हैं, वह भी बिना किसी हानिकारक रसायन या अधिक ऊर्जा उपयोग के।
डॉ. विनय कुमार पांडे, सहायक प्रोफेसर, रिसर्च एंड डेवलपमेंट सेल, बायोटेक्नोलॉजी विभाग, MRIIRS ने कहा, "ब्लू फूड प्रोसेसिंग में हो रहे नवाचारों की मदद से साल भर उत्पादन किया जा सकता है, वो भी पर्यावरण को कम नुकसान पहुंचाते हुए। रीसर्क्युलेटिंग एक्वाकल्चर सिस्टम जैसी तकनीकें पानी की खपत घटाने में मदद कर रही हैं, वहीं ब्लॉकचेन से समुद्र से थाली तक पूरी पारदर्शिता सुनिश्चित की जा सकती है।"
रीसर्क्युलेटिंग एक्वाकल्चर सिस्टम (RAS) विशेष रूप से प्रभावी साबित हो रही है। यह तकनीक बंद टैंक में पानी को लगातार साफ कर दोबारा उपयोग करती है, जिससे पर्यावरण पर असर कम होता है और बीमारियों से निपटने में भी मदद मिलती है, वो भी बिना ज्यादा
एंटीबायोटिक्स के। यह प्रणाली शहरों और जमीन के अंदरूनी इलाकों में मत्स्य पालन के लिए बेहद उपयुक्त है और साल भर बेहतर गुणवत्ता वाली मछली उत्पादन संभव बनाती है।
शोध में ब्लू बायोटेक्नोलॉजी की संभावनाओं पर भी ध्यान दिया गया है। इसमें माइक्रोएल्गी के जेनेटिक मॉडिफिकेशन के ज़रिए पोषकता और उत्पादन क्षमता बढ़ाई जाती है। इससे ओमेगा-3, अमीनो एसिड और एंटीऑक्सीडेंट्स से भरपूर ब्लू फूड तैयार किए जा सकते हैं। नैनोइमल्शन तकनीकों की मदद से पोषक तत्वों की उपलब्धता, स्थायित्व और शेल्फ लाइफ में सुधार होता है, जिससे रेडी-टू-ईट ब्लू फूड्स को बढ़ावा मिल रहा है।
हालांकि इन तकनीकों की संभावनाएं बहुत हैं, लेकिन विकासशील देशों में इनका इस्तेमाल अब भी चुनौतियों से भरा है—जैसे कि उच्च लागत, आधारभूत संरचना की कमी और तकनीकी विशेषज्ञता का अभाव। शोध में नीति निर्माताओं, उद्योगों और निवेशकों से इन बाधाओं को दूर करने और इन टिकाऊ तकनीकों को अपनाने में तेजी लाने की अपील की गई है।