नई दिल्ली, 12 सितंबर 2025 –
जब शांभवी शर्मा अपने बचपन के ग्रामीण बिहार के दौरों को याद करती हैं, तो उन्हें केवल गर्म रसोई और चूल्हे में उबलते बर्तन नहीं, बल्कि आंखें जलना और घंटों खांसी आना भी याद आता है। “मेरी आंखें जलती थीं और मैं घंटों खांसती रहती थी,” 17 वर्षीय शांभवी बताती हैं। “मैं यही सोचती थी कि रोजमर्रा के इस प्यार भरे काम में ऐसा दर्द क्यों होना चाहिए।”
वही स्मृति आज उनकी मिशन बन चुकी है। गुरुवार की शाम पटना के बापू टावर में बिहार आइडिया फेस्टिवल 2025 के मंच पर दिल्ली के संस्कृती स्कूल की बारहवीं की छात्रा शांभवी शर्मा को जोरदार तालियों से स्वागत किया गया। वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पियूष गोयल ने उनके कंधे पर शॉल डालकर उन्हें सम्मानित किया। उनका आविष्कार – ‘लो स्मोक चूल्हा’, एक मिट्टी और ईंट का चूल्हा, जो इनडोर धुएं को 60 प्रतिशत से अधिक कम करता है और 20 प्रतिशत तक लकड़ी की बचत करता है।
यह चूल्हा, जिसे प्यार से ‘वायु ज्योति’ कहा गया है, दिखने में बेहद सरल है। दो एयर इनलेट, एक बाईपास मिक्सिंग चेंबर और सुइट फिल्ट्रेशन ज़ोन इसकी वायु प्रवाह दर को 30 प्रतिशत तक बढ़ाते हैं और हर साल एक टन से अधिक CO₂ उत्सर्जन कम करते हैं। पूरी तरह से स्थानीय सामग्री से बना यह चूल्हा मात्र ₹300-350 में उपलब्ध है, जिससे यह जरूरतमंद परिवारों के लिए सुलभ बनता है।
“स्वच्छ रसोई केवल एक विलासिता नहीं होनी चाहिए,” शांभवी ने फ्लैशलाइट की चमक के बीच आत्मविश्वास से भरे स्वर में कहा। “मेरा सपना है कि ऐसी तकनीक हर ग्रामीण घर तक पहुंचे, ताकि स्वास्थ्य और जीवन की गुणवत्ता में सुधार हो।”
उनका विचार बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की 'जीविका दीदी मिशन' से पूरी तरह जुड़ता है, जो ग्रामीण महिलाओं को टिकाऊ रसोई तकनीकों को अपनाने के लिए सशक्त बनाता है। साथ ही यह एक व्यापक आंदोलन का हिस्सा भी है – हजारों जीविका दीदी, स्टार्टअप संस्थापक और छात्र नवप्रवर्तक इस फेस्टिवल में एकत्रित हुए, जिससे राज्य राजधानी एक सजीव नवाचार प्रयोगशाला बन गई।
बिहार उद्योग एवं आईटी मंत्री नीतीश मिश्रा ने इन युवा विजेताओं को प्रमाण बताया कि “हमारी सबसे बड़ी चुनौतियाँ हमारे सबसे बड़े अवसर बन सकती हैं।” इस कार्यक्रम में वरिष्ठ अधिकारी, IIT पटना के शोधकर्ता और नीति निर्माता भी शामिल हुए, जो राज्य से निकलने वाले अगले बड़े विचार को देखने के लिए उत्सुक थे।
शांभवी के लिए यह सम्मान व्यक्तिगत और व्यावहारिक दोनों है। उनका उद्देश्य इस डिज़ाइन को ओपन-सोर्स बनाकर 10,000 घरों तक पहुँचाना है, ताकि कोई भी इसे आसानी से बना सके। “अगर हर गांव इसे अपनाता है,” उन्होंने कहा, “तो हम अगली पीढ़ी के लिए हवा को सचमुच साफ कर सकते हैं।”
अपने बचपन की धुएँ भरी रसोई से लेकर पूरे राज्य के उज्ज्वल मंच तक, शांभवी शर्मा की यह यात्रा हमें याद दिलाती है कि नवाचार हमेशा प्रयोगशाला से नहीं शुरू होता। कभी-कभी यह खांसी, एक सवाल और एक किशोरी के अनम्य इरादे से शुरू होता है, जो पीछे मुड़कर नहीं देखती।