सूरजकुंड, (फरीदाबाद) 3 अप्रैल। सूरजकुंड अंतरराष्ट्रीय हस्तशिल्प मेले में लकड़ी के फ्रेम पर बनी निशा की स्टोन डस्ट पेंटिंग पर्यटकों को लुभा रही है। मार्बल की कटिंग के दौरान निकलने वाली धूल को एकत्रित करके बनाई गई यह पेंटिंग कभी खराब नहीं होती। इस नई विधा में निशा को 2010 में राष्ट्रपति अवार्ड मिल चुका है।
निशा ने बताया कि 30 साल पहले उनके पति ग्लास पेंटिंग करते थे। उन्हीं से प्रेरणा लेते हुए उन्होंने स्टोन डस्ट पेंटिंग बनाने की ठानी। शुरू में छोटी सी पेंटिंग बनाने में ही उसे महीनों लग गए थे। इसे बनाने के लिए मार्बल की कटिंग में निकलने वाले पाउडर को पहले छाना जाता है। इसके बाद बबूल के गोंद में मिलाकर मेहंदी लगाने वाली कीप में भरकर लकड़ी के फ्रेम पर टेक्स्ट पर लगाकर ड्राइंग की जाती है। इसके बाद आउटलाइन व फिलिंग का काम किया जाता है। इस प्रकार कई बार फिलिंग करने के बाद फाइनल आउटलाइन लगाई जाती है। अंत में इस पर नक्काशी करके फर्निशिंग सिंह के लिए ऑयल कलर प्रयोग किया जाता है।
उन्होंने बताया कि यह पेंटिंग आउटडोर तथा इंडोर दोनों ही जगह पर रखी जा सकती है। यह कभी भी खराब नहीं होती। अपनी इस विधा के बारे में वह लगातार श्रम बस्ती में महिलाओं को प्रशिक्षण दे रही हैं। उन्हें प्रशिक्षण देकर कौशल विकास के बाद रोजगार के साथ जोड़ा जा रहा है।
उन्होंने बताया कि साइज के हिसाब से इस पेंटिंग की कीमत अलग-अलग होती है। यहां पर तीन लाख तक की पेंटिंग मेले में रखी गई है। अगर कोई ग्राहक और भी बड़े प्रेम पर पेंटिंग बनवाना चाहता है तो उसी हिसाब से इसकी कीमत बढ़ती जाती है। ये पेंटिंग प्रदर्शनी में आकर्षक का केन्द्र बनी हुई है।
उन्होंने बताया कि उनकी बनाई गई यह स्टोन पेंटिंग बहुत ही मजबूत हैं। ये पानी, धूप तथा मिट्टी से खराब नहीं होती। पत्थर का पाउडर वर्षों तक ऐसे ही रहता है। इस पर किया गया ऑयल पेंटिंग इसे और अधिक मजबूत तथा आकर्षक बनाता है। उन्होंने बताया कि शुरू में स्टोन पेंटिंग पर लोगों का विश्वास नहीं था लेकिन अब धीरे-धीरे मार्केट में आने के बाद यह बड़ी-बड़ी कोठियों के ड्राइंग रूम की शोभा बढ़ा रही हैं।
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