फरीदाबाद 27अक्टूबर (National24news) भारत अपनी स यता, शिक्षा एवं संस्कृति के लिए वि यात है। हमारी प्राचीनतम शिक्षण प्रणाली दुनिया के लिए सदैव कौतुहल का विषय रही है। विश्व की अनेक स यताएँ पठन-पाठन के लिए भारत के बताए मार्ग पर चलती हैं नालंदा और तक्षशिला अपनी शिक्षा पद्घति के लिए ही वि यात थे परन्तु आज छवि बदल चुकी है। स्कूली शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक की स्थिति बदहाल है। सोचने का विषय है कि यह स्थिति क्यों और कैसे बनी है? आज सभी अभिभावक यही सोचते हैं कि वे विद्यालय में अपने बच्चें के लिए शिक्षा अर्जन नहीं बल्कि सुविधाओं के उपयोग के लिए भेज रहे हैं। विद्यालय अब ज्ञान अर्जन की जगह न हो कर सुविधाओं की खरीद फरो त का विषय बन चुका है। समाज में सभी को यह सोचना होगा कि शिक्षा अर्जन के लिए साधना करनी पड़ती है। केवल सुविधाओं के नाम पर व्यवसाय करना या करना गलत है,
इसी से शिक्षा का मूल उद्ïदेश्य समाप्त हो जाता है। भारत देश में शिक्षा का उद्ïदेश्य बहुत महान हुआ करता था जहाँ शिक्षक की तुलना भगवान से की जाती थी परन्तु नवीन संस्कृति में यह पर परा अब लुप्त हो रही है। अभिभावक अपने बच्चे के लिए शिक्षा की गुणवत्ता को नहीं देखता बल्कि वह वहाँ उपलब्ध सुविधाओं को ही देखता है। सुविधाओं के मामले देखा जाए तो तकनीकी सुविधाएँ होना तो आवश्यक है क्योंकि इससे शिक्षा सरल एवं सहज हो जाती है और भविष्य के लिए तकनीकी ज्ञान आवश्यक होता है क्योंकि इसी के माध्यम से छात्र अपने भविष्य का निर्माण करते हैं। ज्ञान देना व अर्जन करना दोनों ही उद्ïदेश्य महान हैं परन्तु दुर्भाङ्गय का विषय है कि आज आधुनिकिकरण में यह भी एक फैशन बन चुका है। अभिभावक अपने बच्चे को सुविधाओं से सुसज्जित स्कूल में भेजना ही अपना कत्र्तव्य मानते हैं और यहीं शुरू होती है होड़ जो एक खतरनाक मोड़ की ओर ले जाते हैं। अब समय आ चुका है कि सरकार भी इस विषय पर सोचे और विद्या अर्जन के इस महान उद्ïदेश्य को भ्रमित होने से रोकें।
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