फरीदाबाद 27 जुलाई (National24news) हेपेटाइटिस एक ऐसी गंभीर बीमारी है जो दूषित पानी और दूषित खून से शुरू होती है और एक या दो महीने के बाद उभरकर आती है। बरसात के दिनों में बीमारी ज्यादा तेजी से फैलती है। हेपेटाइटिस के पांच प्रकार के वायरस होते हैं हेपेटाइटिस ए और ई दूषित पानी और दूषित भोजन ग्रहण करने से होता है और हेपेटाइटिस बी और सी संक्रमण से फैलती है। कभी-कभी यह बीमारी जानलेवा भी साबित हो सकती है। इसलिए इसके लक्षणों को अनदेखा नहीं करना चाहिए। इस बीमारी से बचने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि इसकी सही समय पर हेपेटाइटिस वैक्सीन लगवा लेनी चाहिए। यह वैक्सीन 0-1 और छह माह पर लगाई जाती है। इसकी जांच कभी भी कराई जा सकती है। समय पर जांच कराकर इस बीमारी से बचा जा सकता है। हेपेटाइटिस ए की जांच केवल लक्षण दिखाई देने पर ही की जाती है।
हेपेटाइटिस रोग लिवर को क्षति पहुंचाता है। हेपेटाइटिस को पांच वायरस ए, बी, सी, डी और ई के नाम से जाना जाता है। यह एक ऐसी बीमारी है जो दूषित खान-पान और साफ-सफाई पर ध्यान न देने के कारण होती है। इस बीमारी के प्रति लोगों मे जागरुकता न होने के कारण लोग इसका शिकार हो रहे हैं। और इसी जागरुकता के अभाव में इसे गंभीर बीमारी का रूप दे रहे हैं और हेपेटाइटिस के रोगियों की संख्या में भी निरंतर इज़ाफा हो रहा है।
एशियन अस्पताल के गैस्ट्रोइंटेरोलॉजी विभाग के एचओडी डॉ. रामचंद्र सोनी ने बताया कि हेपेटाइटिस ए और ई के महीने में करीब 8 से 10 मरीज आते हैं। इससे बचने के लिए आसान तरीका यही है कि साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखा जाए। दूषित पानी और खाने का सेवन करने से बचा जाए, क्योंकि । हेपेटाइटिस ए और ई दूषित पानी के पीने के सेवन से होता है। जो पीलिया के रूप में पहचाना जाता है। दूषित पानी पीने, जंक फूड का सेवन करने, बाहर का खुला या दूषित भोजन खाने से हेपेटाटिस के वायरस मुंह के रास्ते से शरीर में प्रवेश करते हैं।
हेपेटाइटिस बी और सी संक्रमित खून चढ़ाने, गर्भवती महिला से उसके बच्चे को, असुरक्षित यौन संबंधों , इस्तेमाल किए हुए रेजर और सुंई के इस्तेमाल से होता है। इसलिए ऐसी चीजों के इस्तेमाल में सावधानी बरतनी चाहिए। गर्भवती महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान जांच करानी चाहिए ताकि गर्भ में पल रहे बच्चे को हेपेटाइटिस के इंफेक्शन से बचाया जा सके। क्योंकि गर्भवती महिलाओं के लिए बढ़ती प्रेग्रेंसी में हेपेटाइटिस खासकर हेपेटाटिस-ई बेहद खतरनाक होता है इससे बच्चे को खतरा हो सकता है। इससे पीडि़त महीने में करीब 10-15 मरीज हमारे पास इलाज के लिए आते हैं। जब भी कभी खून चढ़वाना पड़े तो उससे संबंधित पूरी जानकरी प्राप्त कर लें कि कहीं आपको चढ़ाया जाने वाला रक्त किसीप्रकार से संक्रमित तो नहीं है।
हेपेटाइटिस के रोगियों की आंखों व त्वचा में पीलापन आ जाता है यानि मरीज को पीलिया की शिकायत होती है। भूख कम लगती है। बिना डाइट के वज़न कम हो जाता है। जोड़ों, सिर और बदन में दर्द रहता है। हर समय कमजोरी या थकान महसूस होती है। लिवर में सूजन आना। मरीज को हर समय बुखार महसूस होता है। इन लक्षणों के पाए जाने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क जांच करानी चाहिए। ताकि समय रहते बीमारी का पता लगाकर उचित इलाज किया जा सके।
हेपेटाइटिस से बचने के लिए पानी उबालकर ठंडा करके पीना चाहिए। ज्यादा से ज्यादा पानी पिएं। खुले में बिकने वाले खाद्य-पेय पदार्थ या फलों का सेवन नहीं करना चाहिए। बासी भोजन नहीं खाना चाहिए। बार-बार हाथ धोने चाहिएं। साफ-सफाई की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए। किसी को अपने रेजर, टूथब्रश, नेलफाइलर आदि इस्तेमाल न करने दें। इस्तेमाल की हुई सुंई, रेजर आदि का प्रयोग न करें। शराब का सेवन करने से बचें। ताजा व साफ फलों का जूस पिएं। बिना डॉक्टर की सलाह के कोई दवा न लें। डॉ. सोनी का कहना है कि हेपेटाइटिस से पीडि़त लोगों को खाना-पीना नहीं छोडऩा चाहिए। अगर वे खाना छोड़ देते हैं तो शरीर के अंदर गलूकोज़ की कमी आ जाती है। शुगर लेवल कम होने पर स्थिति गंभीर हो सकती है। इसलिए ज्यादा से ज्यादा पानी पीना चाहिए और जो अच्छा लगे वो खाना चाहिए।
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