Tuesday 8 August 2017

जसपाल राणा खेल उपकरणों के इम्पोर्ट पर लगाए जा रहे जीएसटी से नाराज़ ,अंतराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में मेडल नहीं जीत पाए तो ज़िम्मेदारी सरकार की होगी


नई दिल्ली:8अगस्त (National24news) निशानेबाज़ी के खेल में इस्तेमाल होने वाले राइफल, पिस्टल और कारतूसों के आयात पर जीएसटी लगाए जाने से देशभर के निशानेबाज़ नाराज़ हैं। कुछ की ट्रेनिंग और प्रैक्टिस रुक गई है तो कुछ निशानेबाज़ इस खेल को ही छोड़ने का मन बना रहे हैं। शूटिंग में इस्तेमाल होने वाले हथियार और बाकि उपकरण विदेशों से ही इम्पोर्ट किये जाते हैं। बंदूकों और कारतूसों के इम्पोर्ट पर अठारह से अठाइस परसेंट जीएसटी लगने के बाद ज़्यादातर निशानेबाज़ों ने अपना इम्पोर्ट रोक दिया है।

भारत के मशहूर निशानेबाज़ और फ़िलहाल भारत की जूनियर पिस्टल शूटिंग टीम के चीफ कोच पद्मश्री जसपाल राणा निशानेबाज़ी के खेल में इस्तेमाल होने वाली बंदूकों और दूसरे उपकरणों को इम्पोर्ट करने पर लगाए जा रहे जीएसटी से नाराज़ हैं। जसपाल राणा को कहते हैं कि ''खेल उपकरणों के आयात पर जीएसटी लगने से उन खिलाडियों को ज़्यादा परेशानी होगी जो आर्थिक रूप से कमज़ोर हैं। अब से पहले शूटिंग की बंदूकें और अन्य खेलों के लिये इम्पोर्ट होने वाले सामान पर कभी भी ड्यूटी या टैक्स नहीं लगाया गया। जीएसटी लगने से खिलाडियों पर बोझ बढ़ गया है और ऐसे में अगर वो अंतराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में मेडल नहीं जीत पाए तो ज़िम्मेदारी सरकार की होगी।''


जसपाल राणा ने शूटिंग और दूसरे खेलों के सामान के इम्पोर्ट पर जीएसटी के खिलाफ बोलते हुए कहा कि ''मुझे नहीं दिख रहा कि फेडरेशन या सरकार की तरफ से कोई कार्रवाई की जा रही है। क्यूंकि जिस हिसाब से शूटर्स को परेशानी हो रही है, अभी तक न तो किसी का बयान आया है और न ही किसी ने सोशल मीडिया पर ही इस पर कोई रिएक्शन दिया है। मुझे ताज्जुब होता है कि हमारे खेल मंत्री के पास यहां पांच लेन की रेंज का उद्घाटन करने के लिए पूरा एक दिन था, और भी मंत्री और ओलम्पियन उसमे यहां मौजूद थे, लेकिन उनके पास इतना सोचने का टाइम नहीं है कि इन बच्चों को जीएसटी से क्या परेशानी हो रही है। एक गरीब घर का बच्चा जो क़र्ज़ लेकर बैंक से लोन लेकर शूटिंग के लिए हथियार मंगाता है, उसपर सरकार अठारह परसेंट और अठाइस परसेंट जीएसटी लगा दे, तो वो कैसे उसको पूरा कर पाएगा। शूटिंग का कोई वेपन या इक्विपमेंट इंडिया में नहीं बनता। एक गरीब बच्चा जो लोन लेकर शूटिंग कर रहा है, कैसे भरपाई करेगा इसकी। 

आज तक हम संघर्ष करके यहां तक पहुंचे, संघर्ष के बाद सरकार ने उसपर जीएसटी लगा दिया। मुझे समझ नहीं आता कि सरकार को इससे कितना फायदा होगा, सौ-दो सौ करोड़ या ज़्यादा, क्या इससे हम ओलिम्पिक मेडल ला सकते हैं। शूटिंग और आर्चरी जैसे गेम जिसमे सब कुछ इम्पोर्ट करना पड़ता है। हमें हर चीज़ को ड्यूटी फ्री मंगवाने की आज़ादी थी, उसकी वजह से ही हम यहां तक पहुंचे हैं। खेलों में इस्तेमाल होने वाले समान पर जीएसटी लगाना, मुझे नहीं लगता कि सरकार का सही कदम है।''

नेशनल राइफल एसोसिएशन ऑफ इंडिया के सचिव राजीव भाटिया ने कहा कि "हमने भारत सरकार के वित्त मंत्री को इस बारे में पत्र लिखकर आग्रह किया है कि जल्द से जल्द निशानेबाज़ी में इस्तेमाल होने वाले हथियार और इक्विपमेंट से जीएसटी हटाया जाए। इससे निशानेबाज़ों पर आर्थिक बोझ बढ़ गया है।" 

जीएसटी का बोझ बढ़ने से बंदूकें और कारतूस महंगा हो गया है, ऐसे में कई शूटर ऐसे भी हैं जो निशानेबाज़ी छोड़ने का मन बना रहे हैं, पिस्टल और रिवॉल्वर पर अठाइस परसेंट जीएसटी लगा है, राइफल, शॉटगन और कारतूसों पर अठारह परसेंट है और दूसरे खेल उपकरणों को इम्पोर्ट करने पर बारह परसेंट जीएसटी देना पड़ रहा है, बिना जीएसटी दिए कस्टम विभाग शूटिंग और दूसरे खेलों के इम्पोर्टेड सामान को रिलीज़ नहीं कर रहा है, ऐसे में खिलाडियों पर आर्थिक बोझ बढ़ गया है। कई अन्य जाने-माने निशानेबाज़ों ने इस बारे में वित्त मंत्री को चिट्ठी लिखी है कि जल्द से जल्द खेल सामान पर लगाया गया जीएसटी हटा दिया जाए।

नैशनल राइफल एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया के पूर्व ट्रेजरर 'संजीव बहल' ने बताया कि "हम लोगों ने कोशिश की कि शूटिंग को ग्रास रूट लेवल तक लेकर जाएं जहाँ टैलेंट है। शूटिंग महंगा खेल है, लेकिन आज इसमें अस्सी परसेंट से ज़्यादा शूटर सामान्य परिवार के हैं, जहाँ पे माँ-बाप मेहनत करके अपने बच्चे के टैलेंट को सपोर्ट करना चाहते हैं। इसपर अठारह और अठाइस परसेंट जीएसटी लगाने से काफी बोझ बढ़ गया है। एक कारतूस तीस रूपए का मिलता है, सरकार उसे तब देती है जब वो कई साल की मेहनत के बाद नैशनल स्कवाड में आता है। तब तक वो अपनी और अपने माँ-बाप की जेब से खर्च करता है। जीएसटी लगने से शूटर्स का मनोबल टूट रहा है। कई तो शूटिंग छोड़ने की सोच रहे हैं, NRAI के प्रेसीडेंट ने सरकार को इस बारे में लिखा है कि शूटिंग और दूसरे खेल सामान से जीएसटी हटाया जाए।'' 

दिल्ली के निशानेबाज़ फरीद अली को भी अपनी शूटिंग के लिए जर्मनी से दो पिस्टल इम्पोर्ट करने हैं, जिनकी कीमत 3100 यूरो यानि तकरीबन दो लाख पच्चीस हज़ार रूपए है। लेकिन जीएसटी लगने के बाद 65 हज़ार रूपए का खर्च और बढ़ गया है, तो फिलहाल इम्पोर्ट करना महंगा पड़ेगा। फरीद को उम्मीद है कि सरकार खिलाडियों के हित में सही फैसला लेगी और जल्द ही शूटिंग और दूसरे खेलों के सामान के इम्पोर्ट से जीएसटी हटा दिया जाएगा और खिलाडियों को राहत की सांस मिलेगी। 

दिल्ली की ट्रैप शूटर 'कथा कपूर कहती है कि ''अभी मैंने शूटिंग के लिए कारतूस इम्पोर्ट किया जिसपर छप्पन हज़ार रूपए जीएसटी देना पड़ा। इस मंथ हमारी गन इम्पोर्ट होने वाली थी, लेकिन हमने नहीं की, इस उम्मीद में कि शायद जीएसटी हट जाए कुछ दिन बाद। छह लाख की गन है जिसपर डेढ़ लाख रूपए जीएसटी देना पड़ेगा। सरकार को खेल उपकरणों के इम्पोर्ट से जीएसटी हटाना चाहिए।''

देहरादून के पिस्टल शूटर कुलदीप वर्मा ने कहा कि ''जीएसटी का बहुत असर हो रहा है, हमारे वेपन काफी महंगे हैं। पहले सारे कस्टम ड्यूटी से एग्ज़म्पटेड थे, अब पिस्टल पर अठाइस परसेंट 
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