Monday 14 August 2017

मुक्ति पर्व -एक महान प्रेरणा दिवस - कृपा सागर


फरीदाबाद:14 अगस्त (National24news) मुक्ति पर्व समागम प्रतिवर्ष 15 अगस्त को आयोजित किया जाता है। इस दिन जहाँ देश में राजनैतिक स्वंत्रतता का आनन्द प्राप्त हो रहा होता है वहीं संत निरंकारी मिशन इस आनन्द में आत्मिक स्वतंत्रता से प्राप्त होने वाले आनन्द को भी सम्मिलित कर मुक्ति पर्व मनाता है। मिशन का मानना है कि जहाँ राजनैतिक स्वतंत्रता सामाजिक तथा आर्थिक उन्नति के लिए अनिवार्य है, वहीं आत्मिक स्वतंत्रता भी शान्ति और शाश्वत् आनन्द के लिए आवश्यक है। एक ओर देश उन स्वतंत्रता सेनानियों के प्रति आभार व्यक्त करता है जिन्होंने देश की स्वतंत्रता के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया था, दूसरी ओर मिशन उन महात्माओं के तप-त्याग को याद करता है, जिन्होंने सत्य ज्ञान की दिव्य ज्योति द्वारा मानवता का कल्याण करने में सारा जीवन लगा दिया। 

आरम्भ में यह समागम शहंशाह बाबा अवतार सिंह जी की धर्मपत्नी जगतमाता बुद्धवंती जी जो वर्ष 1964 में इसी दिन ब्रह्मलीन हुई थी उनकी याद में मनाया जाता था। बाद में जब शहंशाह बाबा अवतार सिंह जी 17 सितम्बर, 1969 को ब्रह्मलीन हुए तो यह दिन शहंशाह-जगतमाता दिवस के रुप में मनाया जाने लगा और श्रद्धालु भक्त उनके प्रति भी आभार प्रकट करने लगे। परन्तु जब सन्त निरंकारी मण्डल के प्रथम प्रधान लाभ सिंह जी ने 15 अगस्त 1979 को यह नश्वर शरीर त्यागा तो बाबा गुरबचन सिंह जी ने इस दिन को मुक्तिपर्व का नाम दिया। आजकल मुक्तिपर्व देश वा दूर देशों के कोने-कोने में उन महापुरुषों को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिये मनाया जाता है जो मिशन के सन्देश को जन जन तक पहँुचाने के लिये जीवन पर्यन्त समर्पित रहे। वर्ष 2015 से निरंकारी राजमाता जी और 2016 से बाबा हरदेव सिंह जी के नाम भी जुड़ गये।

इसी बीच संत निरंकारी सेवादल ने मुक्तिपर्व के साथ इसे गुरु पुजा दिवस के रुप में भी मनाना आरंभ कर दिया। सेवादल के भाई बहन तन करके तो वर्ष भर साध संगत तथा सद्गुरु की सेवा करते ही हैं, परंतु गुरु पूजा दिवस पर धन करके भी सद्गुरु से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं और अपने लिये सुख समृद्धि की कामना करते हैं। यह सेवा देश भर से आती परंतु इसे सद्गुरु के चरणों में केवल दिल्ली में ही अर्पित किया जाता।इस अवसर को और सुन्दरता प्रदान करने के लिए सेवादल रैली होती और उसके साथ सांस्कृतिक कार्यक्रम भी प्रस्तुत किया जाता। भाव यही था कि सद्गुरु से आशीर्वाद प्राप्त करें ताकि आगे के लिए भी सभी भाई-बहन तन-मन-धन से समर्पित भाव से सद्गुरु, मिशन तथा साध संगत की सेवा कर सकें और जरुरत पड़ने पर देश के नागरिकों को भी सहायता प्रदान कर सकें।

वर्ष 2003 से सद्गुरु बाबा हरदेव सिंह जी महाराज के जन्म दिवस 23 फरवरी को गुरुपूजा दिवस के रुप में मनाया जाने लगा। अतः सेवादल की रैली तथा अन्य कार्यक्रम मुक्तिपर्व अर्थात् 15 अगस्त की बजाए 23 फरवरी को ही आयोजित करना आरंभ हो गया। इसके अलावा धन करके गुरुपूजा में सेवादल के साथ साथ अन्य भक्त भी भाग लेने लगे।

आज मुक्ति पर्व एक महान प्रेरणा दिवस के रुप में मनाया जा रहा है। जगतमाता बुद्धवंती जी ने सद्गुरु तथा सेवादारों की सेवा करके एक महान आदर्श स्थापित किया जो आज भी निरंकारी जगत में प्रेरणा का स्रोत बना हुआ है। बाबा अवतार सिंह जी ने गुरु-शिष्य के संबंध को इस कदर महत्व दिया और जी कर दिखाया कि ये उनके पश्चात् आज तक एक महान आदर्श के रूप में कायम है। शिष्य के तौर पर उन्होंने अपने सद्गुरु बाबा बूटा सिंह जी तथा उनके परिवार को अपने घर में ठहराया और स्वयं तथा जगतमाता जी ने सेवा करके अनेक वरदान प्राप्त किए और यश के पात्र बने।

सद्गुरु रूप में बाबा अवतार सिंह जी ने मिशन की विचारधारा को पूर्णता प्रदान करते हुए उसके हर पहलू को स्पष्ट किया। ’अवतार बाणी’ नाम की पुस्तक इसी दिशा में प्रत्येक निरंकारी संत महात्मा का मार्गदर्शन करती है और करती रहेगी। दिसम्बर 1962 में बाबा अवतार सिंह जी ने बाबा गुरबचन सिंह को सौंप दी और स्वयं फिर से एक गुरसिख के रूप में कार्य करने लगे। इस रूप में सात वर्ष तक उन्होंने हर गुरसिख के समक्ष जी कर बताया कि हमने गुरू का हर वचन ज्यों का त्यों कैसे मानना है। उनके साथ पहले भी बहुत से महापुरूष ऐसे थे जिन्होंने उन्हें सद्गुरु रूप में ऐसायोगदान दिया था पर अब इस भाव को और भी दृढ़ता प्राप्त हुई। संत निरंकारी मण्डल के प्रथम प्रधान तथा अन्य सदस्यों के साथ-साथ अनेक ऐसे महापुरूषों ने कदम-कदम पर गुरु-शिष्य के पावन संबंधों को प्रमाणित किया और हर गुरसिख ने तन, मन, धन से समर्पित होकर सद्गुरु की सेवा की और ब्रह्यज्ञान की दिव्य ज्योति को जन-जन तक पहुचाने में महान योगदान दिए। इन महापुरूषों ने न साधनों की परवाह की न अपने सुख-आराम की। जिस ओर भी सद्गुरु का इशारा आया अथवा आदेश मिला, उधर ही चल दिये। सत्संग, सेवा और सुमिरण के भी अनेकों उदाहरण स्थापित किये।

इधर मिशन को विस्तार मिलता गया और निरंकारी परिवार भी बढ़ता गया। बाबा गुरबचन सिंह जी ने मिशन की विचारधारा को विशेषतौर पर ब्रह्यज्ञान को भक्तों के पारिवारिक तथा सामाजिक जीवन में स्थापित किया। उनके हर सामाजिक रीति-रिवाजों में मिशन को शामिल किया। और इस प्रकार जहाँ मिशन के प्रति भक्तों की अपनी आस्था को दृढ़ किया वहीं मिशन के सत्य, प्रेम, शांति तथा सद्भाव के संदेश को भी आगे बढ़ाने का प्रयास किया। बाबा गुरबचन सिंह जी के समय में भी गुरसिखों ने भरपूर योगदान दिये।

जैसा कि उल्लेख किया जा चुका है वर्ष 2015 से मुक्ति पर्व के अवसर पर निरंकारी राजमाता कुलवंत कौर जी को भी याद किया जाता है। उन्होंने गुरु परिवार में रहकर गुरु की बहू, पत्नी एवं माता के रूप में जो उदाहरण पेश किये, वे आज भी गुरसिखों के लिये प्रेरणा का स्रोत बने हुए हैं। उन्होंने गुरु परिवार के साथ अपने सामाजिक संबंध से कहीं अधिक गुरु और शिष्य के संबंध को प्राथमिकता दी। और सद्गुरु के साथ-साथ साध संगत की भी सेवा की। उनके विचार, गीत तथा कविता आज भी साध संगत बड़े प्रेम से पढ़ती और स
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