Saturday, 8 July 2017

SYL नहर ना बनने के लिए हरियाणा के लोगों के गुनेहगार हैं कांग्रेस और इनेलो –जवाहर यादव




चण्डीगढ़:8जुलाई(National24news)50 वर्ष के हरियाणा के इतिहास में अगर राज्य के लिए सबसे महत्वपूर्ण SYL नहर नहीं बन पाई तो इसके लिए निश्चित तौर पर वे राजनीतिक दल जिम्मेदार हैं जिन्होंने इस दौरान यहां राज किया है। इन दशकों में सबसे ज्यादा वक्त कांग्रेस और लोकदल की सरकारों का रहा है। भले ही ये दल एक-दूसरे पर या किसी अन्य पर आरोप-प्रत्यारोप करते रहें, सच यह है कि इस नहर के ना बन पाने के लिए जिम्मेदार कांग्रेस और लोकदल ही हैं।
कांग्रेस पार्टी की दस साल की भूपेंद्र सिंह हुड्डा सरकार का वक्त तो इस नहर के मामले में ऐतिहासिक विफलता वाला रहा है जब एक लम्बा वक्त सिर्फ पंजाब सरकार के जल समझौते तोड़ने वाले बिल पर प्रेजिडेंशियल रेफरेंस आने में ही बीत गया। कांग्रेस के ही मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेंद्र सिंह ने जल समझौते तोड़ने का अनैतिक काम किया था और हरियाणा की कांग्रेस सरकार अपनी केंद्र की कांग्रेस सरकार से इस मामले पर कोई हल नहीं निकलवा पाई। इसमें ना सिर्फ कांग्रेस सरकारी की विफलता दिखती है बल्कि इस पार्टी की नीयत पर भी सवाल खड़े होते हैं।
कमाल की बात यह है कि हुड्डा राज के दसों साल दक्षिण हरियाणा से कई नामी नेता सरकार में मंत्री रहे लेकिन SYL पर उन्होंने कोई प्रयास किए। जबकि इस नहर से फायदा उसी दक्षिण हरियाणा को होना है। सिंचाई मंत्री और जनस्वास्थ्य मंत्री रहे इन नेताओं ने जनहित की नहर बनवाने की बजाय निजी हितों को पूरा करने के लिए ही सरकारी जोर लगाया। आज वही लोग SYL के लिए धरना देने या आंदोलन करने की बात करते हैं तो प्रदेश की जनता उन पर हंसती है और कहती है कि ‘उल्टा चोर कोतवाल को डांटे’।
इससे पहले राज्य के लोगों ने इनेलो को भी बहुमत की सरकार बनाकर दी थी जिसके पूरे कार्यकाल में वे भी नहर बनवाने के लिए कोई विशेष प्रगति नहीं कर पाए। 2002 में राज्य के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बावजूद इनेलो सरकार नहर नहीं बनवा पाई और जब 2004 में पंजाब की कांग्रेस सरकार ने समझौते ही तोड़ दिए तब भी हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे। पंजाब के उस अनैतिक कदम के खिलाफ हरियाणा में भाजपा के विधायकों ने इस्तीफे दिए थे जबकि इनेलो अपनी धुन में सरकार चलाती रही थी। भाजपा के साथ इनेलो विधायकभी इस्तीफा दे देते तो पंजाब की कांग्रेस सरकार को पक्का झुकना पड़ता। उस वक्त की ढील को हरियाणा डेढ़ दशक से भुगत रहा है।
सवाल यह है कि अब आंदोलन पर उतारू ये दोनों दल अपने-अपने कार्यकालों को भूल गए हैं क्या ?  भाजपा की लोकप्रिय सरकार पर आरोप लगाने से पहले क्या उन्हें अपने गिरेबां में छांक कर नहीं देखना चाहिए।
और ऐसा बिल्कुल नहीं है कि पिछली सरकारों की विफलता गिनवाकर हम अपने लिए कोई रियायत का रास्ता देख रहे हैं। बिल्कुल नहीं। राज्य की मनोहर लाल सरकार के कार्यकाल के कुछ ही समय में सुप्रीम कोर्ट से वो प्रेजेडेंशियल रेफरेंस आया है जो कांग्रेस के दस सालों में नहीं आ पाया। सुप्रीम कोर्ट में इस मामले पर कानूनी लड़ाई पूरी ताकत के साथ लड़ी जा रही है और कोर्ट का स्पष्ट आदेश आने के साथ ही नहर निर्माण के लिए भाजपा दृढ़संकल्प है।
यही नहीं, दक्षिण हरियाणा के लिए पेयजल और सिंचाई का पानी उपबल्ध करवाने के लिए भाजपा सरकार वैकल्पित रास्ते भी तलाश रही है। कई ऐसे पहलूओं पर काम चल रहा है जो भिवानी, महेंद्रगढ़, रेवाड़ी, गुड़गांव, नूंह, फरीदाबाद और पलवल में भूजल स्तर सुधारने और पानी की दिक्कत को स्थाई तौर पर दूर करने में कारगर साबित होंगे।

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