Tuesday 7 November 2017

ज्ञान को कर्म में कैसे ढालें -कृपा सागर


फरीदाबाद:7 नवंबर I  संसार में हम ऊँची शिक्षा प्राप्त करते हैं किसी कला या व्यवसाय में निपुणता प्राप्त करने का प्रयास करते हैं ताकि जीवन में कुछ बन सकें, जीवन को सुन्दर बना सकें। इसी प्रकार ब्रह्मज्ञान भी एक ऐसी शिक्षा है जो हमारे जीवन में निखार लाती है। सांसारिक शिक्षा तो केवल हमारे कार्यालय अथवा व्यवसाय में ही काम आती है परन्तु ब्रह्मज्ञान हमारे प्रत्येक कर्म में हमारा मार्ग दर्शन करता है हमारी उन्नति का कारण बनता है। भक्ति की तो परिभाषा ही ज्ञान को कर्म में ढालना है। ये कर्म सत्संग सेवा और सुमिरण तो हैं ही, इनके अलावा भी हम जो कुछ करते हैं घर परिवार में या अपने कार्यस्थल पर सभी में ज्ञान को शामिल कर लें तो भक्ति बन जाते हैं। 

निंरकारी बाबा हरदेव सिंह जी महाराज सूई और धागे का उदाहरण दे कर समझाते थे कि ज्ञान उस सूई के समान है जो कर्म रुपी धागे के बिना किसी काम की नहीं। अतः ज्ञान और कर्म एक दूसरे के पूरक हैं, एक के बिना दूसरा अधूरा है। बाबा जी एक अन्य उदाहरण देते थे कि कर्म ज्ञान के बिना अन्धा होता है ज्ञान कर्म के बिना लंगड़ा। यदि अन्धा लंगड़े व्यक्ति को अपने कन्धों पर उठा ले और और लंगड़ा उसे रास्ता बताता रहे तो दोनों ही एक भयंकर अग्निकांड में से भी बच कर निकलने में सफल हो जायेंगे।

अतः ज्ञान का कार्य है कर्म का मार्गदर्शन करना, इसे सही दिशा देना। कर्म का संबन्ध हमारे शरीर की आवश्यकताओं के साथ जुड़ा हुआ है। इस लिए यह ज्ञान के बिना ही चल निकलता है परन्तु अन्धा होने के कारण अपने से आगे कुछ नहीं देख पाता। अपनी ही इच्छाओं की पूत्र्ति में लगा रहता है यहाँ तक कि अपने परिवार के अन्य सदस्यों के हितों तक के लिए भी नही सोच पाता। 

स्वार्थ मंे अहम् भाव प्रबल रहता है जो ईष्र्या, घृणा और हिंसा तक को जन्म देने का कारण बन जाता है। महापुरुष मानते हंै कि यदि कहीं भी किसी दो व्यक्तियों में, पति-पत्नी हों, भाई-बहन हों, किसी कार्यालय अथवा संस्था में हों, बच्चे हांे या बड़े हों यदि उनमें किसी प्रकार का भी मत-भेद है तो उसके पीछे अहम् भाव का ही हाथ होगा। यदि एक में है तो शायद कोई हल निकल भी आए परन्तु यदि दोनों में ही अहम् भाव प्रबल होगा तो बात हिंसा तक जा सकती है।

कर्म तो प्रत्येक व्यक्ति को जन्म से ही प्राप्त हो जाते हैं और आगे से आगे रुप बदलते रहते हैं। इनका अन्धापन भी बरकरार रहता है। ब्रह्मज्ञान मनुष्य जीवन का परम् लक्ष्य होते हुए भी किसी किसी के ही जीवन में आता है। कहा जाता है कि किसी के कुछ पुराने कर्म नेक होते हैं तो ईश्वर दया करता है और ऐसे व्यक्ति की भेंट किसी ब्रह्मज्ञानी से होती है, सत्गुरु से होती है जो उसेे ब्रह्मज्ञान प्रदान करके उसकी आँखों पर से माया की पट्टी उतार कर उसको प्रकाश में स्थित कर देता है, उसका अन्धापन दूर कर देता है।

जैसे कहा गया कि हमारे कर्म का आधार हैं हमारी इच्छायें। शरीर की जरुरतें हैं तो इच्छायें जन्म लेती हैं मन में। अतः यदि ज्ञान ने हमारे कर्मों को दिशा देनी है उनका मार्ग दर्शन करना है तो उसे मन में ही स्थान देना होगा। वास्तव में सत्गुरु हमें मन के माध्यम से ही ब्रह्मज्ञान प्रदान करते हंै। वहीं से इसे हृदय में स्थान मिलता है जहाँ कर्म के साथ मिलकर, भक्ति का रुप लेकर हमारे जीवन में निखार लाता है। 

जैसे ही मन को ज्ञान का प्रकाश उपलब्ध होता है उसकी सोच स्वार्थ तथा अन्य संकीर्णताओं के आगे भी देखने लग जाता है। अब वह केवल अपने हितों के लिए ही नहीं सोचता, परिवार की, समाज की देश व सारे संसार की भलाई की कामना करता है और उसके लिए योगदान देने वाला बन जाता है। अब उसे हर मानव अपने ही परिवार का सदस्य दिखाई देता है। उसके लिए सारा संसार एक परिवार बन जाता है। कोई पराया नहीं रहता तो ईष्र्या किससे हो घृणा वैर विरोध मार-काट किससे हो? सभी के धर्म प्यारे हो जाते हैं, जाति के नाम पर किसी प्रकार का भेदभाव नहीं रहता। सभी धर्मग्रंथों के प्रति आदर का भाव बन जाता है।

अब हम अपने हर कर्म में हर समस्या हर सवाल में इस निरंकार को, इसके ज्ञान को शामिल कर लेते हैं और जब यह ब्रह्मज्ञान हमें हमारे हर कर्म को सही दिशा देता है तो हमारे जीवन मंे सुंदरता आ जाती है। हमें प्रशंसा के पात्र बना देती है। अब हमारा धर्म जाति भाषा संस्कृति के आधार पर किसी के साथ मतभेद नहीं रहता टकराव नहीं रहता।

निरंकारी बाबा हरदेव सिंह जी कहा करते थे कि यदि हम अपने किसी भी कर्म में उसके आरंभ से ही निरंकार को शामिल कर लेते हंै तो वह कर्म मुबारक ही होता चला जायेगा। इसी प्रकार यदि हम अपने सामाजिक संबंधों को भी निरंकार का आधार प्रदान करते हैं तो वह संबंध भी मुबारक होते चले जायेंगे सुदृढ होते चले जायेंगे। विकार दूर होते चलें जायेंगे, सद्भाव सद्विचार और सद्कर्म आते चले जायेंगे।

यही कारण है कि युगों-युगों से संत महात्मा गुरु पीर पैगम्बर सभी मानवमात्र को ब्रह्मज्ञान प्राप्त करने के लिए प्रेरित करते आए हैं और आज भी निरंकारी सत्गुरु माता सविन्दर हरदेव जी महाराज और संत महापुरुष यही कह रहे हैं किः-


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