Sunday 5 August 2018

हरियाणा विश्वकर्मा कौशल विश्वविद्यालय ने शुरू किया प्राचीन एवं लुप्तप्राय


गुरुग्राम 6 अगस्त । हरियाणा विश्वकर्मा कौशल विश्वविद्यालय में आज एक कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस कार्यशाला में भारत की प्राचीन तथा लुप्तप्रायः लिपियों जैसे ब्राह्मी लिपि व शारदा लिपि के संरक्षण व संवर्धन का विषय मुख्य रूप से उठाया गया।

ज्ञात हो कि संस्कृत भाषा की मूल लिपि शारदा लिपि है जिसे बाद में देवनागरी लिपि में लिखा जाने लगा। शारदा लिपि कश्मीर में मुख्य रूप से प्रचलित थी परंतु अब वह लिपि लगभग लुप्तप्राय: हो गई है। परंतु इस लिपि में लिखे हुए अनेक पांडुलेख अभी भी मौजूद हैं।

 इसी तरह ब्राह्मी लिपि भी पूरे संसार की समस्त लिपियों की जननी है। ब्राह्मी लिपि इस सृष्टि की आदि लिपि कही जाती है। ब्राह्मी लिपि से दो लिपियों के निकलने का प्रमाण मिलता है। उत्तर ब्राह्मी तथा दक्षिण ब्राह्मी।उत्तर ब्राह्मी से उत्तर भारत की समस्त लिपि निकली। जिनमे शारदा, डोगरी, गुरमुखी, नागरी, देवनागरी, असमिया, गुजराती, प्रमुख है। इसी तरह दक्षिण ब्राह्मी लिपि से दक्षिण भारत की अनेक लिपियों  जिसमें तेलुगु,  तमिल, कन्नड़, मलयालम आदि लिपियों प्रमुखता से जानी जाती हैं।

आज की तिथि में शारदा और ब्राह्मी लिपि लगभग लुप्तप्राय: हो चुकी है जबकि इन दोनों भाषाओं के लगभग एक लाख पुरातत्व लेख आज भी मौजूद है जो अनुवाद की इंतजार कर रहे हैं। भारत के समृद्ध इतिहास व पुरानी भारतीय धरोहर को जानने और समझने के लिए इन लिपियों का जानना और समझना बहुत आवश्यक है तथा उसके बाद इन पुरातत्व लेखों को अनुवाद करके उन में लिखी हुई बातों को समझा जा सकता है।

हरियाणा विश्वकर्मा कौशल विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित इस कार्यशाला में शारदा लिपि  के मुख्य विद्वान श्री उदय काकरू जी, श्री शशि शेखर जी टोश्वानी तथा श्री हीरालाल जी वांगनू उपस्थित थे तथा साथ ही ब्राह्मी लिपि के मुख्य जानकार डॉक्टर श्रेयांस द्विवेदी जी, उपाध्यक्ष हरियाणा संस्कृत अकादमी, डॉक्टर सुरेंद्र मोहन मिश्र, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय,  श्री शिव नारायण शास्त्री भिवानी तथा श्री रामेश्वर दत्त शर्मा, पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा संस्कृत अकादमी एवं उनके साथ ही श्री गवेश जी डीडी मेट्रो पर संस्कृत भाषा के समाचार वाचक उपस्थित थे।
 वर्कशॉप की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलपति श्री राज नेहरू ने की तथा संचालन सहायक कुलसचिव संजीव तायल ने किया। इस कार्यशाला में विश्वविद्यालय के शैक्षिक अधिष्ठाता डॉक्टर आर एस राठौर तथा संयुक्त निदेशक कर्नल उत्कृष्ट राठौर भी उपस्थित रहे।

कार्यशाला में सभी भारतीय लिपियों को संरक्षित व संवर्धित करने की तथा इन लिपियों के डिजिटलाइजेशन के लिए कार्य करने की बातों पर विचार हुआ।यह भी विचार हुआ कि भारत के युवाओं में इन लिपियों को प्रचलित करने के लिए तथा युवाओं का रुझान इन लिपियों की तरफ बढ़ाने के लिए  रोजगारोन्मुख शिक्षा से जोड़ा जाए तथा इन लिपियों में सर्टिफिकेट कोर्स, डिप्लोमा कोर्स, डिग्री कोर्स आदि के लिए पाठ्यक्रम तैयार किया जाए। विश्वविद्यालय अपना पहला बैच विश्व संस्कृत दिवस अर्थात 26 अगस्त से गुड़गांव में संस्कृत भाषी विद्वानों के लिए प्रारंभ करेगा ऐसी योजना भी बनी।
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