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Monday 3 July 2017

हम मार देते हैं (उनकी) जिज्ञासा : कुलदीप सिंह

हम मार देते हैं (उनकी) जिज्ञासा : कुलदीप सिंह

फरीदाबाद : 3जुलाई(National24news) हम आज एक विशेष क्षेत्रा में अपनी पहचान बना रहे हैं - मेरा संकेत आजकल के अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा देने वाले स्कूलों से है। अधिकांश परिवारों के लोग भारत में घर में अपनी घरेलू भाषा में ही बात करते हैं परन्तु अपने छोटे-छोटे बच्चों को अंग्रेजी माध्यम वाले स्कूलों में दाखिला दिलाने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहते। क्यों?

ये (तथाकथित) अंग्रेजी स्कूल तो मोह पाश के मायाजाल की तरह हैं जो देखने में बहुत सुन्दर और आकर्षक लगते हैं परन्तु छोटे बच्चों की जिज्ञासा और कौतूहल को अनजाने में मार देते हैं। खूबसूरत यूनिपफार्म में सजा-धजा बच्चा स्कूल की अपनी उस कक्षा के कमरे में घुसरता है जहां न केवल उसके घूमने पिफरने पर बंदिशे हैं। उस कमरे से बिना पूछे बाहर नहीं जा सकता बल्कि एक ऐसे भाषा माध्यम से उसका सामना होता है जिसे वह नहीं क बराबर जानता है। कितना कष्टकारक होगा यह दृश्य कल्पना कीजिए आप कुछ ऐसे लोगों से घिर गए हो- जो केवल पश्तो (अनजानी) भाषा में ही बोल रहे हो और आप....।

 फिर भी वह बच्चा तेा बहुत उदार है जो ऐसी पिफल्म के दृश्यों को देखने समझने का साहस करता है जिसे वह समझता ही नहीं। शायद वह इसे ऐसे रोमांचक कार्य के रूप में लेता है। जिसमें उसे लगता है कि एक दिवस ऐसा भी होगा। जब वह इस भाषा अवरोध को पार कर लेगा चले चलो...। जो कुछ भी हो, थोड़े समय में ही उसके दिमाग में अर्थहीन अंकों और तुकबंदियों की भीड़ लग जाती है लेकिन अपनी क्लास के सहपाठियों की दोस्ती के सहारे शायद वह अपनी अरूचिकर आनंदविहीन यात्रा जारी रखता है। जहां उसे खिलौने खेलने और उछलकूद के अवसरों की आशा होती है। चतुर्दिक हरियाली से लेकर अपनी क्लास तक के भिन्न-भिन्न वातावरण से वह भिन्न-भिन्न बातें सीखता है। उसका इम्तिहान लिया जाता है। उसे प्रश्न पत्रा हल करने को दिया जाता है, भले ही वह उसे पढ़ नहीं सकता तो क्या हुआ। उसका शिक्षक उसे बताता है कि उसे क्या करना है। उसे इस तरह का होमवर्क मिलता है जिसे वह खुद नहीं कर सता और आशा यह की जाती है कि वह करके लाए और उस पर सर्दियों में भी सुबह जल्दी-जल्दी उठना और स्कूल बस पकड़ने की आपाधापी...।

जिन्दगी बहुत कठिन....पर दूसरा कोई रास्ता भी तो नहीं है। अगर बच्चों को बाहर घूमने दौड़ने की आजाद दे दी जाए तो क्लास में किसी बच्चे को बैठा देख मुझे आश्चर्य ही होगा (यदि वह स्वस्थ है तो) क्या हम ऐसे स्वस्थ शिक्षण तंत्रा का विकास नहीं कर सकते। जहां अधिक आजादी हो और जहां बच्चे को इतस तरह पढ़ाया जा सके। जिससे उसकी सीखने की जिज्ञासा और कौतूहल को जानने का भाव अर्थपूर्ण ढंग से तजी से बढ़ सके।


जी हां यह संभव है यदि प्रगतिवादी स्कूल, बच्चों की उम्र को ध्यान में रखते हुए स्वस्थ, यथार्थपरक ओर गुणवत्तायुक्त मूल्य परक शिक्षा प्रदान करने के लिए ऐसी संभावनाओं पर ईमानदारी से विचार करें जो उचित समाधान और हल प्रदान कर से। परिणाम बहुत ही उत्तम होगा। यूरोपियन स्कूल इसके उदाहरण है। भारत में भी कुछ ऐसे स्कूल है परन्ु उनकी संख्या बहुत ही कम है। भारत के अंग्रेजी माध्यम वाले स्कूलों ने अभिभावकों को भी इस हद तक दिगभ्रमित कर दिया है कि वे भी इस अंधी दौड़ में शामिल होने में बहुत गर्व महसूस करते हैं और अपने नन्हें अबोध बच्चों को भविष्य का आईस्टाइन बनते देखने का दिवास्वप्न पाले हुए हैं - जो कभी भी नहीं होने वाला।

Monday 22 May 2017

सफेद दाग से अब मिलेगा छुटकारा और फोटोथेरेपी ने बढ़ाया आत्मविश्वास :डॉ. अमित बांगिया

सफेद दाग से अब मिलेगा छुटकारा और फोटोथेरेपी ने बढ़ाया आत्मविश्वास :डॉ. अमित बांगिया

फरीदाबाद: 22 मई(National24news.com) सफेद दाग एक ऐसी समस्या है जो लोगों का आत्मविश्वास कम कर देती है। वो अपने दोस्त-रिश्तेदारों से मिलने से कतराते हैं। अकेले रहना पसंद करते हैं। वे किसी पार्टी-शादी या अन्य किसी भी कार्यक्रम में भाग नहीं लेते। यहां तक कि वे अपने बच्चों या साथियों के साथ छुट्टियां बिताने के लिए या घूमने के लिए भी कहीं नहीं जाते, लडक़े अपने दाग छुपाने के लिए दाढ़ी रखते हैं तो लडकियां स्टॉल से अपना मुंह छुपाती हैं। पूरी बाजू के कपड़े पहनते हैं ताकि उनके शरीर पर फैले हुए सफेद दाग किसी को दिखाई न दे। खासकर चेहरे के दाग के कारण लोग चिड़चिड़ापन और तनाव के शिकार हो जाते हैं।

विटिलिगो नाम की इस बीमारी से पीडि़त मरीज महीनों ही नहीं कई सालों तक इसके इलाज के लिए डॉक्टरों के पास चक्कर लगाते हैं। होम्योपैथिक, आयुर्वेदिक, ऐलोपैथिक सभी तरह की दवाईयां लेते हैं, लेकिन आराम न मिल पाने के कारण निराशा ही हाथ लगती है। ऐसे ही दिल्ली निवासी अनोज  कुमार सिंगला भी आठ- दस सालों तक डॉक्टरों के चक्कर लगाकर परेशान हो चुके थे। 

अनोज  को उनके एक दोस्त ने फरीदाबाद स्थित एशियन अस्पताल के त्वचा रोग विशेषज्ञ डॉ. अमित बांगिया के बारे में बताया। वे जब डॉ. बांगिया से मिले  तो डॉक्टर ने उन्हें विश्वास दिलाया कि उनके ये दाग जल्द ही उनका साथ छोड़ देेंगे। इसके लिए थोड़ा समय लगेगा। डॉ. बांगिया द्वारा दिए गए निर्देशानुसार अनाूज ने इलाज लिया और दो महीने के भीतर अनोज के चेहरे के सभी सफेद दाग साफ हो गए। अब अनोज  पूरे आत्मविश्वास के साथ सेल्फी भी लेते हैं और सभी कार्यक्रमों  में भी भाग लेते हैं। 

एशियन इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज अस्पताल के त्वचा रोग विशेषज्ञ डॉ.अमित बांगिया ने बताया कि त्वचा पर सफेद धब्बे या तो पिगमेंट्स में विकार होने के कारण होते हैं। यह एक जेनेटिक समस्या भी हो सकती है। फोटोथेरेपी ट्रीटमेंट प्रकाश के माध्यम से इलाज करने वाली थेरेपी है। जो कुछ खास नेरोबैंड किरणों के इस्तेमाल से की जाती है। यूवीबी प्रकाश के उत्सर्जन के लिए खास तरह की मशीन का इस्तेमाल किया जाता है। इस ट्रीटमेंट का इस्तेमाल त्वचा संबंधी अनेक समस्याओं के इलाज के लिए किया जाता है। ये किरणें पिगमेंट को त्वचा के रंग में परिवर्तित कर देती हैं। इससे सफ ेद दाग को त्वचा के रंग में बदल जाती है। 

डॉ. बांगिया ने बताया कि फोटोथेरेपी ट्रीटमेंट चेहरे पर होने वाली एलर्जी या एक्जि़मा आदि पर होने वाली खुजली को कम करता है। सूजन कम करता है। शरीर में हो रही विटामिन डी की कमी को पूरा करता है। इसका उपचार लंबे समय तक चलाया जा सकता है और आराम पहुंचाता है। उन्होंने बताया कि पिछले 10 साल में 1200 से ज्यादा मरीजों को सफेद दाग से छुटकारा दिलाकर उनका आत्मविश्वास बढ़ाया है। 

Tuesday 16 May 2017

कम उम्र में हो रहे हाइपरटेंशन के शिकार : डॉ. आशु

कम उम्र में हो रहे हाइपरटेंशन के शिकार : डॉ. आशु

फरीदाबाद:16मई(National24news.com) बदलती हुई जीवनशैली में कई ऐसी बीमारियां जो उम्र से पहले ही हमारे शरीर में घर कर रही हैं। इनमें से एक मुख्य बीमारी है उच्च रक्तचाप, जिसे आम भाषा में हम हाई ब्लड प्रेशर या हाइपरटेंशन के नाम से भी जानते हैं। इसका कारण इसके नाम में ही छिपा है। हाइपरटेंशन यानि तनाव। नौकरी में काम का तनाव, पढ़ाई का तनाव, एडमिशन का तनाव, बच्चों की पढ़ाई का तनाव और न जाने कितने तरह के तनाव और यही तनाव रूप दे रहा है हाइपरटेंशन शनि ब्लड़ प्रेशर को।

डॉक्टरों की मानें तो बदली जीवनशैली और तनाव हाई ब्लड प्रेशर का मुख्य कारण है। योग या व्यायाम के लिए समय न होना, बाहर का खाना खाना, शारीरिक श्रम न करना, सिगरेट व शराब का सेवन तनाव की स्थिति में ब्लड प्रेशर को बढ़ाने में मुख्य भूतिका निभाता है।

एशियन इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज़ अस्पताल के इंटरनल मेडिसिन विभाग के कंसलटेंट डॉ. आशु अरोड़ा का कहना है कि आजकल २० से ३० वर्ष की उम्र में भी कई हाई ब्लड प्रेशर के मामले सामने आ रहे हैं। इतना ही नहीं कई बार हार्ट अटैक और ब्रेन अटैक भी कम उम्र में देखने को मिल रहा है जिसका मुख्य कारण है हाई ब्लड प्रेशर।

 डॉ. आशु का कहना है कि सुबह जल्दी उठकर योगञ्चव्यायाम और सैर करनी चाहिए। सुबह उठकर खाली पेट कम से कम तीन गिलास पानी पीना चाहिए। अपने खाने में फल व हरी सब्जियों का अधिक से अधिक सेवन करना चाहिए। नमक कम खाना चाहिए। जहां तक हो सके बाहर का जंकफूड व तेल-मसाले से युक्त भोजन से परहेज करें। यदि तनाव में हैं तो अपने परिवारजनों या निकटतम दोस्त से खुलकर बात करें। ऐसा करने से तनाव कम होगा। वजन को नियंत्रित रखना चाहिए।

Tuesday 2 May 2017

प्रदूषण बढ़ा रहा है सांस के रोगियों की समस्या: डॉ. मानव

प्रदूषण बढ़ा रहा है सांस के रोगियों की समस्या: डॉ. मानव

 
फरीदाबाद: 2 मई (National24news.com) आजकल प्रदूषण के बढ़ते स्तर के कारण दमा का खतरा भी काफी बढ़ गया है। आसपास के परिवेश में बढ़ते प्रदूषण के स्तर के कारण शुद्ध वायु की कमी हो गई है जिसका सबसे ज्यादा असर दमा के मरीजों पर हुआ है। इनमें बच्चे और वृद्ध शामिल है इनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है। मौसम में बदलाव बच्चों को बीमारियां जल्दी ही अपनी चपेट में ले लेती है। ऐसे में बच्चों का खास ख्याल रखना चाहिए। अगर बच्चा स्कूल जाता है तो उसके स्कूल में उसका मेडिकल मुहैया कराना चाहिए। ताकि 

एशियन अस्पताल के श्वसन रोग विशेषज्ञ डॉ. मानव मनचंदा का कहना है कि गेहूं की कटाई वाले दिनों में सांस के रोगियों की समस्या बड़ जाती है। इसके अलावा शहर में चल रहे फ्लाईओवर के निर्माण कार्य के चलते बड़ रहे प्रदूषण के कारण दमा रोगियों की संख्या में निरंतर इजाफा हो रहा है। इनमें बच्चों से लेकर युवा और वृद्ध भी शामिल हैं। प्रतिदिन १५-२० वर्ष आयुवर्ग में ५, २०-२५ आयुवर्ग में १० और इससे अधिक आयुवर्ग के करीब ७ मरीज सांस संबंधी पेशानी लेकर उनके पास पहुंच रहे हैं।

डॉ. मानव का कहना है कि अस्थमा का अटैक आने के बहुत सारे कारणों में वायु का प्रदूषण भी एक कारण है। अस्थमा के अटैक के दौरान सांस की नली के आसपास के मसल्स में कसाव और वायु मार्ग में सूजन आ जाता है। जिसके कारण हवा का आवागमन अच्छी तरह से हो नहीं पाती है। दमा के रोगी को साँस लेने से ज़्यादा साँस छोडऩे में मुश्किल होती है। एलर्जी के कारण श्वसनी में बलगम पैदा हो जाता है जो सांस लेने में परेशानी और बढ़ा देता है। एलर्जी के अलावा भी अस्थमा होने के बहुत से कारण हो सकते हैं। 

इनमें घर के आस-पास धूल भरा वातावरण, वायु प्रदूषण, घर के पालतू जानवर, रुई के बारीक रेशे, गेहूँ, आटा, कागज की धूल, फूलों के पराग, सुगंधित सौन्दर्य प्रसाधन, सर्दी, धू्रमपान, अधिक मात्रा में शराब पीना, जंक फूड का अत्याधिक सेवन व्यक्ति विशेष का कुछ विशेष खाद्द-पदार्थों से एलर्जी, महिलाओं में हार्मोनल बदलाव, कुछ विशेष प्रकार के दवाएं, सर्दी के मौसम में ज़्यादा ठंड, एलर्जी के बिना भी दमा का रोग शुरू हो सकता है। इसके अलावा  तनाव या भय के कारण भी  सांस संबंधी समस्या हो सकती है।  
लक्षण-
सांस लेने में कठिनाई होती है।
सीने में जकडऩ जैसा महसूस होता है।
दमा का रोगी जब सांस लेता है तब एक घरघराहट जैसा आवाज होती है।
साँस तेज लेते हुए पसीना आने लगता है।
बेचैनी-जैसी महसूस होती है।
 सिर भारी-भारी जैसा लगता है।
जोर-जोर से सांस लेने के कारण थकावट महसूस होती है। स्थिति बिगड़ जाने पर उल्टी भी हो सकती है आदि। जब अस्थमा के लक्षण काबू में न हो या फिर अटैक पर दवाओं का असर नहीं हो रहा हो तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।

उपचार-
दमा की दवा सदा अपने साथ रखें। 
सिगरेट-बीड़ी के धुंए से बचें।
जिन दवाओं, खाद्य पदार्थों और चीजों से आपको एलर्जी होती है उनसे दूर रहें।श्
सर्दी-जुकाम से पीडि़त मरीजों  के  संपर्क में जाने से बचें। 
खान-पान की ओर विशेष ध्यान दें।
तनाव से बचें।
धूल-प्रदूषण वाले स्थानों पर जाने से परहेज करें। 
नियमित व्यायाम करें। 
मौसम में बदलाव के साथ ही अपने डॉक्टर से संपर्क करें। 







Wednesday 26 April 2017

तेज धूप कही छीन न ले आपका निखार -- डॉ. अमित बांगिया

तेज धूप कही छीन न ले आपका निखार -- डॉ. अमित बांगिया

फरीदाबाद: 26 अप्रैल (National24news.com) सुबह और दोपहर में तेज धूप के कारण त्वचा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। गर्मियां शुरू होते ही शरीर में पानी की कमी हो जाती है जिससे त्वचा और बालों संबंधी समस्याएं भी गंभीर रूप धारण कर लेती हैं। तेज धूप में बाहर निकलने से बचना चाहिए। गर्मी के दिनों में लंबे समय तक धूप में काम करने या खड़े रहने से त्वचा संबंधी रोगों को बढ़ावा मिलता है। 

एशियन अस्पताल के सीनियर डर्मेटोलॉजिस्ट डॉ. अमित बांगिया ने बताया कि पहले लोग मई में धूप के कारण होने वाली त्वचा संबंधी समस्या लेकर आते थे, लेकिन इस वर्ष अप्रैल माह की शुरूआत में ही  इस समस्या के साथ अस्पताल में पहुंच रहे हैं। उनका कहना है कि गर्मी के दिनों में तेज धूप के संपर्क में आने से सन बर्न की समस्या आती है। इससे शरीर पर लाल थक्के बन जाते है। जो बाद में काले पडऩे लगते हैं और इनमें बहुत ज्यादा जलन होती है। लगातार धूप में रहने से पसीना आने के कारण हीट रैशेेज़ बन जाते हैं 

इनमें भी लगातार जलन होती है। जो लोग तैराकी करते हैं। उन्हें क्लोरीन केे पानी के कारण स्वीमर ईच का शिकार होना पड़ता है। त्वचा ही समस्या होने पर स्कीन एक्सपर्ट से सलाह जरूर लें। इसके अलावा सन एलर्जी भी एक गंभीर समस्या है, जोकि कुछ लोगों को सूरज की किरणों से होती है। इसमें पीडि़त के शरीर पर लाल दाने या खरोंच बन जाती हैं। यह शरीर के कुछ जैसे-मुंह, पीठ, गर्दन हाथ-पैर यानि धूप के संपर्क में आने वाले भागों को प्रभावित करती हैं। गंभीर स्थिति होने पर त्वचा पर छोटे-छोटे छाले या फफोले हो जाते हैं जो पूरे शरीर पर फैल जाते हैं। 

डॉ. बांगिया ने बताया कि इन दिनों हमारे पास रोजाना करीब ५० मरीज हीट रैश, फंगल इंफेष्ठशन, बैक्टीरियल इंफेष्ठशन और पिम्पल की शिकायत लेकर अस्पताल पहुंच रहे हैं। गर्मियां शुरू होते ही शरीर में पानी की कमी हो जाती है जिससे त्वचा और बालों संबंधी समस्याएं भी गंभीर रूप धारण कर लेती हैं। तेज धूप में बाहर निकलने से बचना चाहिए। गर्मी के दिनों में लंबे समय तक धूप में काम करने या खड़े रहने से त्वचा संबंधी रोगों को बढ़ावा मिलता है। बाल कमजोर हो जाते हैं और झडऩे लगते हैं। 

यह समस्या ऐसे लोगों में ज्यादा पाई जाती है जो गोवा जैसी जगहों से घूमकर आए हों या समुद्री एरिया के संपर्क में रहते हों। इसके अलावा लगतार बढ़ रही तेज धूप और प्रण्ूषण के कारण यह समस्या निरंतर बढ़ती जा रही है। उन्होंने बताया की गर्मी, सेनीटेशन, फास्टफूड, हाईजीन और पसीना साफ न होने के कारण त्वचा पर इंफेष्ठशन का खतरा बढ़ जाता है।

हीट रैश से बचने के उपाय: इन समस्याओं से बचने के लिए धूप में कम से कम निकलने की कोशिश करें। अगर किसी कारण वश धूप में बाहर निकलना पड़ रहा है तो टोपी, छाता, सनगलासिस, सूती, ढ़ीले और पूरी बाजू के कपड़े पहनकर निकलना चाहिए, जो पसीना सोख सके। 

सन बर्न से बचने के लिए संस्क्रीन लोशन लगाकर धूप में निकलना चाहिए। हर चार घंटे के बाद या बाहर निकलने से २० मिनट पहले संसक्रीन लोशन लगाना चाहिए। एसपीएफ ५० लोशन विशेषज्ञों की सलाह लेकर ही इस्तेमाल करना चाहिए।

हीट रैश से बचने के लिए स्ट्रॉंग मॉश्चराइज़र और तेल लगाकर न निकलें।  इसके अलावा हैवी मेकअप का भी इस्तेमाल न करें। इससे पिम्पल भी हो सकतेे हैं। इनकी जगह कैलामाइन लोशन का इस्तेमाल करें। 
तैराक  विटामिन-सी लोशन लगाकर पानी में उतरें और  पानी से बाहर निकलकर विटामिन सी वॉश से साफ करें।

विटामिन-सी युक्त टैबलेट्स का सेवन करना चाहिए, जो ब्लड प्यूरीफाई करती हैं और शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती है। 

थोड़ी-थोड़ी देर के बाद और जितना हो सके उतना अधिक से अधिक पानी पीना चाहिए। कुछ लोग केवल प्यास लगने पर ही पानी पीते हैं इससे शरीर में पानी की पूर्ति नहीं हो पाती। पानी की कमी भयावह स्थिति उत्पन्न करती है। पूरे दिन में एक वयक्ति को कम सेे कम आठ गिलास पानी पीना चाहिए। 

शरबत, नारियल पानी, फ्रूट जूस आदि तरल पदार्थों और तरबूज, खरबूज, संतरा जैसे रसीले फलों का सेवन करना चाहिए। ठंडे पानी का इस्तेमाल करना चाहिए।