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Friday 14 April 2017

इंगलैंड में ही दस वर्षों तक अध्यापक कार्य किया --कुलदीप सिंह संस्थापक प्रधानाचार्य

इंगलैंड में ही दस वर्षों तक अध्यापक कार्य किया --कुलदीप सिंह संस्थापक प्रधानाचार्य

फरीदाबाद : 14अप्रैल (National24News.com) लेखक परिचय: पंजाब विश्व विद्यालय से स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त  कुलदीप सिंह ने इंगलैण्ड के वार्षिक विश्व विद्यालय तथा हाॅमर्टन काॅलेज कैम्ब्रिज से टीचर ट्रेनिंग प्राप्त की और इंगलैंड में ही दस वर्षों तक अध्यापक कार्य किया। बाद में फरीदाबाद (हरियाणर) के सैक्टर-21ए में हाॅमर्टन ग्रामर स्कूल के संस्थापक प्रधानाचार्य बने। आपको पचास वर्षो की टीचिंग का अनुभव है।विषय संदर्भ: इज देयर रियली अ प्राॅब्लम? (दि हिन्दू में 27.03.2017 को प्रकाशित) यह मनोवैज्ञानिक नहीं बल्कि आधारगत तत्वों से संबंधित है।वरिष्ठ मनोवैज्ञानिक द्वारा गणित संबंधी समस्याओं के संदर्भ मे प्रस्तुत विचार रूचिकर लगे।

मुझे रूचिकर लगने का कारण संभवतः प्रयुक्त भाषा थी। जो संभवतः किसी भी पाठक के लिए सहजता से समझ में न आ सकी। लेखक ने आज कल के अनुपयोगी एवं अकुशल गणित शिक्षकों के बारे में कहीं भी उल्लेख नहीं किया है। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि घटाने का एक साल 203 से 167 घटाना साक्षात्कारों के दौरान बी.एस.सी. (आनर्स), एम.एससी (मैथस) डिग्री धारी लोगों को दिया गया और बहुत बार मे।ने उनका परीक्षण किया परन्तु एक भी प्रतियोगी तार्किक और बु;िमतापूर्ण ढंग से मुझे संतुष्ट नहीं कर सका। अतः समस्या गणित विषय के साथ नहीं, समस्या उस तंत्रा के साथ है जो बहुत भयवाह है। 

आजकल हम नर्सरी और प्राईमरी के बच्चों से बहुत अपेक्षाएं रखते हैं। परन्तु एक दहाई का सारा संदर्भ समझाने के लिए पर्याप्त समय भी देते। अधिकांश टीचर एक और शून्य मिलकर दस है ‘पढ़ाते हैं और अच्छा की जगह बुरा कर देते हैं। अधिकांशतः टीचर दो, तीन और तीन ‘दो’ का अंतर समझाने में पिछड़ जाते हैं। हमारा ध्यान तो मात्रा उत्तर ‘6’ (छह) पर ही होता है और वही लक्ष्य रह जाता है। कोई भी किताब खोलकर दखे लीजिए, क्षेत्रापफल लिखा होता है बीस मीटर स्कवायर जबकि उत्तर होता है बीस स्कवायर मीटर।

आज ‘गणित’ ओल्म्पियाड की दौड़ में शामिल हो चुका है परन्तु एक ऐसा विषय बनकर जो मशीन की तरह काम करने वाले लोगों के काम तो आता है परन्तु आनंद की गुंजायिश बहुत कम हो गई है। कोई बी.एड. डिग्री देने वाला काॅलेज इस बारे में नहीं सोचता या ऐसे कारकों पर ध्यान नहीं देना चाहता। केवल पैसा बनाने के उद्देश्य वाले बहुत सारे साधारण किस्म के काॅलेज आज दुकानें खोलकर बैठ गए है। 

यदि कोइ्र भूले भटके इस तरह का प्रयास करने के लिए आगे भी आये तो आजकल की सरकारों की उदासीनता ही उन्हें निष्क्रिय कर देती है। अन्यथा ये टीचर निर्माता पफैक्टरीज अपने अध्यापकों को विदेशों के अच्छे विश्वविद्यालयों में उनके तंत्रा और विकास को सीखने के लिए भेज सकती है। मैं कुछ विशिष्ट नामों का उल्लेख अवश्य कर सकता हं। जैसे कोवेन्टरी का कोवेनटरी काॅलेज आॅपफ एजुकेशन और कैम्ब्रिज का हाॅमर्टन काॅलेज आदि। मैं उनके नाम अनुशंसित कर सकता हूँ।